बिलासपुर। गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्रों को NSS कैंप में नमाज पढ़ने के लिए मजबूर करने के मामले में संलिप्त 7 प्रोफेसरों को हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट ने मामले में दर्ज FIR को रद्द करने के लिए लगाई गई दो याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
जानकारी के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश राकेश सिन्हा के डिवीजन बेंच ने प्रोफेसरों द्वारा खुद के खिलाफ दायर FIR को निरस्त करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दी है। छात्रों की शिकायत पर यूनिवर्सिटी के शिक्षकों के खिलाफ कोटा थाने में बीएनएस की धारा 190,196(1)(बी),197(1)(बी),197(1)(सी),299,302 व अन्य के तहत मामला दर्ज है।
आइये जानते हैं अब तक इस मामले में क्या- क्या हुआ।
- NSS कैंप में विवाद की शुरुआत:
गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय (GGU) में 26 मार्च से 1 अप्रैल तक कोटा ब्लॉक के शिवतराई क्षेत्र में NSS कैंप का आयोजन हुआ। इस कैंप में कुल 159 छात्रों ने हिस्सा लिया, जिसमें 4 मुस्लिम छात्र भी शामिल थे। यह कैंप शुरूआत में सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन धीरे-धीरे यह एक गंभीर विवाद का केंद्र बन गया। छात्रों की विविधता और कैंप की गतिविधियों ने बाद में तनाव पैदा किया, जिसने पूरे विश्वविद्यालय को प्रभावित किया। यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम भी सामने आए।
- ईद के दिन की घटना :
31 मार्च को ईद-उल-फितर के पवित्र दिन कैंप में अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिसने सबको हैरान कर दिया। कोऑर्डिनेटर ने चार मुस्लिम छात्रों को मंच पर बुलाया और नमाज अदा करने का निर्देश दिया। इसके बाद उन्होंने बाकी 155 हिंदू छात्रों को भी इसे दोहराने और सीखने को कहा। यह कदम छात्रों के लिए अप्रत्याशित और अस्वीकार्य था, जिससे मन में असंतोष जागा और मामला तूल पकड़ने लगा।
- छात्रों का विरोध:
कोऑर्डिनेटर का यह फैसला छात्रों को नागवार गुजरा, जिसके चलते 14 अप्रैल को चार साहसी छात्रों ने कोनी थाने में शिकायत दर्ज कराई। उनकी शिकायत ने इस मामले को औपचारिक रूप दिया और इसे गंभीरता से लेने का आधार प्रदान किया। यह कदम न केवल व्यक्तिगत विरोध था, बल्कि पूरे समुदाय की भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयास भी था, जिसने बाद में बड़े प्रदर्शनों को जन्म दिया।
- ABVP का प्रदर्शन:
15 और 16 अप्रैल को ABVP और हिंदूवादी संगठनों ने विश्वविद्यालय परिसर में जोरदार प्रदर्शन शुरू किया। प्रदर्शनकारियों ने रजिस्ट्रार ऑफिस में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ किया, जो उनकी नाराजगी और धार्मिक भावनाओं को दर्शाता था। यह प्रदर्शन न केवल शांतिपूर्ण था, बल्कि इसने प्रशासन पर दबाव बनाने का काम भी किया, जिससे मामला और गहराया।
- कुलपति पर इस्तीफे की मांग:
प्रदर्शन के दौरान “GGU नहीं बनेगा JNU” जैसे नारे गूंजे, और छात्रों ने कुलपति प्रो. आलोक चक्रवाल से इस्तीफा मांगा। उनकी मांग थी कि इस घटना के लिए प्रशासन जिम्मेदार है और कुलपति को नैतिकता के आधार पर पद छोड़ देना चाहिए। यह मांग प्रदर्शन का मुख्य मुद्दा बन गई और तनाव को बढ़ाया।
- प्रशासन का कड़ा कदम :
प्रदर्शन की गर्मी के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की। NSS यूनिट को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया गया, और 12 कार्यक्रम समन्वयकों को उनके पद से हटा दिया गया। यह कदम छात्रों की मांगों को शांत करने और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया, लेकिन विवाद को पूरी तरह खत्म नहीं कर सका।
- जांच कमेटी का गठन:
मामले की गहराई से जांच के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया गया, जिसे 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया। यह कदम निष्पक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास था, लेकिन इससे पहले ही कई सवाल उठने शुरू हो गए कि जांच कितनी प्रभावी होगी।
- नई नियुक्ति और बयान:
प्रो. राजेंद्र मेहता को नया कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया गया, और 159 छात्रों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू हुई। हालांकि, ABVP ने आरोप लगाया कि मुस्लिम छात्रों से बाकी छात्रों पर दबाव डाला जा रहा है, जिससे जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
- छात्रों की चुप्पी:
इस पूरे मामले में अब तक सिर्फ 4 छात्रों ने ही हिम्मत दिखाई और बयान दिया, जबकि 155 छात्र चुप्पी साधे हुए हैं। छात्र नेताओं का दावा है कि शिक्षकों की ओर से दबाव बनाया जा रहा है, जो इस चुप्पी का कारण हो सकता है।