Children Stress News: गांव के बच्चे शहरी बच्चों से ज्यादा स्ट्रेस झेलने में सक्षम, साइकेट्रिस्ट का जवाब

Children Stress News:  गांव के बच्चे शहरी बच्चों से ज्यादा स्ट्रेस झेलने में सक्षम, साइकेट्रिस्ट का जवाब

Children Stress News: गांव और शहर की जीवनशैली में बुनियादी फर्क होता है। जहां एक ओर शहरी जीवन भागदौड़, सुविधा और प्रतिस्पर्धा से भरा होता है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण जीवन अपेक्षाकृत शांत और प्रकृति के करीब होता है। हालांकि एम्स नई दिल्ली के वरिष्ठ साइकेट्रिस्ट डॉ. नंद कुमार का कहना है कि भले ही शहरों के बच्चे पढ़ाई और करियर में अव्वल नजर आते हैं, लेकिन जब बात जीवन में आने वाले तनाव और कठिन परिस्थितियों से जूझने की आती है, तो गांव के बच्चे उनसे बेहतर साबित होते हैं।

गाँव के बच्चें होते हैं मानसिक रूप से बेहद मजबूत

Children Stress News: डॉ. नंद कुमार बताते हैं कि मानसिक बीमारियां जैसे तनाव, डिप्रेशन और एंग्जायटी अब आम होती जा रही हैं। चाहे बच्चा हो या वयस्क, गांव हो या शहर कोई भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन इन मानसिक चुनौतियों से निपटने की क्षमता में गांव और शहर के लोगों में अंतर दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि झेलने की शक्ति (resilience) ही असली फर्क पैदा करती है। एक ही तरह के तनाव से गुजर रहे दो लोगों में से गांव का बच्चा अक्सर बेहतर ढंग से हालात को संभाल लेता है, जबकि शहरी बच्चा जल्दी टूट सकता है।
इसका मुख्य कारण शहरी जीवन में बच्चों को अत्यधिक प्रोटेक्टिव वातावरण में पालना है। शहरों में माता-पिता बच्चों को सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करने को कहते हैं और बाकी सभी जिम्मेदारियों से उन्हें दूर रखते हैं। इसके विपरीत गांवों में बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ घरेलू कामों में भी हाथ बंटाते हैं, जिससे उनमें जीवन की हकीकत से निपटने की समझ और साहस विकसित होती है। इसी वजह से ग्रामीण बच्चे भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत होते हैं और स्ट्रेस या रिजेक्शन का सामना बेहतर तरीके से कर पाते हैं।

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बचपन से दी गई सीख काम आती है तनाव में

Children Stress News: डॉ. नंद कुमार का मानना है कि आईआईटी या नीट जैसे कठिन एग्जाम्स देने वाले बच्चे भले ही पढ़ाई में बेहद होशियार हों, लेकिन जब वे वास्तविक जीवन की जटिलताओं जैसे असफलता, रिश्तों की उलझन या सामाजिक दबाव से गुजरते हैं, तो टूट जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्होंने पहले कभी जिम्मेदारी या कठिनाई का सामना नहीं किया होता।
इस स्थिति को सुधारने के लिए डॉ. कुमार सुझाव देते हैं कि माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा सुरक्षा न दें। उन्हें थोड़ी-बहुत जिम्मेदारियां दें, सीमाएं सिखाएं और जीवन की सच्चाईयों से रूबरू कराएं। अगर बच्चों को हर चीज बिना मेहनत के मिलती रही, उन्हें कभी ‘ना’ नहीं सुननी पड़ी, तो वे बाद में जीवन में आने वाली असफलताओं और तनावों को झेल नहीं पाएंगे।

शहर में पढ़ाई को ही अधिक महत्व

Children Stress News: उन्होंने यह भी कहा कि शहरी माता-पिता पर समाज का दबाव भी होता है, जैसे कि ‘फलां के बच्चे को ये मिला, तो हमारे बच्चे को भी मिलना चाहिए। यह सोच बच्चों के विकास में बाधा बनती है। अतः जरूरी है कि अभिभावक बच्चों की मानसिक मजबूती को प्राथमिकता दें और उन्हें हर छोटी-बड़ी चुनौती से गुजरने का अवसर दें, ताकि वे जिंदगी के संघर्षों के लिए तैयार हो सकें।
कुल मिलाकर यह रिपोर्ट बताती है कि गांव का जीवन बच्चों को मानसिक रूप से अधिक सक्षम बनाता है। असली सफलता सिर्फ अकादमिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि जीवन के उतार-चढ़ाव से जूझने की काबिलियत में है।


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