CG News: रायपुर l छत्तीसगढ़ में ‘हाफ बिजली बिल योजना’ में किए गए हालिया बदलावों का असर अब आम जनता की जेब पर साफ दिखने लगा है। राज्य के लाखों घरेलू उपभोक्ताओं को इस महीने बिजली बिल के रूप में भारी भरकम झटका लगा है। पहले जहां 300 से 400 रुपये तक का औसत बिल आता था, वहीं अब यह बढ़कर 800 से 1000 रुपये तक पहुंच गया है। इससे उपभोक्ता न केवल परेशान हैं, बल्कि राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल भी खड़े कर रहे हैं।
पूर्ववर्ती सरकार की महत्वाकांक्षी ‘हाफ बिजली बिल योजना’ के तहत 400 यूनिट तक की बिजली खपत पर उपभोक्ताओं को बिल में 50 प्रतिशत तक की छूट दी जाती थी। इस योजना का उद्देश्य गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को राहत देना था। योजना की बदौलत लाखों परिवारों को बिजली बिल में सीधी छूट मिल रही थी, जिससे उनकी मासिक खर्चों में काफी सहूलियत होती थी।
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योजना में बदलाव से आम जनता की बढ़ी मुश्किलें
CG News: हाल ही में बनी नई सरकार ने इस योजना की समीक्षा करते हुए इसमें बड़े बदलाव किए हैं। अब यह छूट केवल गरीबी रेखा के नीचे (BPL) आने वाले कुछ चुनिंदा परिवारों तक सीमित कर दी गई है। अन्य सामान्य उपभोक्ताओं के लिए योजना की छूट पूरी तरह समाप्त कर दी गई है। इसका सीधा असर यह हुआ है कि अब सामान्य परिवारों को बिजली के लिए पूरी कीमत चुकानी पड़ रही है।
बिजली बिलों में अचानक आई इस बढ़ोतरी को लेकर राज्यभर में रोष फैल गया है। राजधानी रायपुर से लेकर बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, अंबिकापुर और अन्य जिलों से उपभोक्ताओं ने शिकायतें दर्ज कराई हैं। कुछ जगहों पर स्थानीय नागरिक संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन भी किए गए। आम लोगों का कहना है कि यह बदलाव बिना किसी पूर्व सूचना के किया गया, जिससे उन्हें मानसिक और आर्थिक दोनों तरह से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
क्या इस बदलाव का फायदा विरोधी पार्टी उठाएगी
CG News: पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा कि हाफ बिजली बिल योजना गरीबों के लिए थी, उसे बंद कर सरकार ने जनहित के साथ अन्याय किया है। यह फैसला आम आदमी की जेब पर सीधा हमला है। वहीं, वर्तमान सरकार का तर्क है कि बिजली कंपनियों को हो रहे घाटे और केंद्र से अनुदान में कमी के कारण यह कदम उठाना पड़ा है। ऊर्जा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि योजना को पूरी तरह बंद नहीं किया गया है, बल्कि इसे जरूरतमंदों तक सीमित किया गया है।
इस मुद्दे ने अब राजनीतिक रंग भी लेना शुरू कर दिया है। विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है, जबकि सरकार इस फैसले को वित्तीय मजबूरी बता रही है। ऐसे में देखना होगा कि सरकार इस जन असंतोष को कैसे संभालती है और क्या कोई दूसरी अन्य राहत योजना सामने लाती है या नहीं।