CG Naxal Spokesperson Abhay Bayan : छत्तीसगढ़ में नक्सल मोर्चे पर हाल ही में दो बड़े सरेंडर से माओवादी संगठन में हलचल मच गई है। पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू उर्फ वेणुगोपाल और केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश के आत्मसमर्पण के बाद माओवादी संगठन बुरी तरह बौखला गया है। इस पर संगठन की ओर से पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है, जिसमें केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय ने दोनों नेताओं को “गद्दार” करार देते हुए संगठन विरोधी गतिविधियों में शामिल बताया है।
अभय का बयान- “सोनू और रूपेश ने संगठन से गद्दारी की”
प्रवक्ता अभय द्वारा जारी प्रेस नोट में कहा गया है कि सोनू लंबे समय से संगठन की नीतियों की आलोचना कर रहे थे और अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अन्य सदस्यों को गुमराह कर रहे थे। उनका आरोप है कि आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों ने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते संगठन से मुंह मोड़ लिया है। अभय ने यह भी कहा कि रूपेश और सोनू जैसे गद्दारों को संगठन कभी माफ नहीं करेगा और उन्हें उनके कर्मों की सजा जरूर दी जाएगी।
“कुछ लोगों के सरेंडर से संगठन कमजोर नहीं होता”- माओवादी प्रवक्ता
अभय ने प्रेस नोट में दावा किया कि कुछ लोगों के आत्मसमर्पण करने से संगठन की ताकत या विचारधारा कमजोर नहीं होती। उन्होंने कहा कि माओवादी आंदोलन एक वैचारिक लड़ाई है, और जो लोग इसे छोड़कर सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कर रहे हैं, वे “सत्ता के प्रलोभन” में आकर जनविरोधी कदम उठा रहे हैं। संगठन ने ऐसे सभी आत्मसमर्पित माओवादियों का बहिष्कार करने की घोषणा की है।
आत्मसमर्पण से माओवादी संगठन में मची हलचल
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, सोनू और रूपेश जैसे शीर्ष कमांडरों का सरेंडर माओवादी संगठन के लिए बड़ा झटका है। दोनों लंबे समय से बस्तर और झारखंड ज़ोन में संगठन की नीतियों और रणनीतियों के प्रमुख चेहरे रहे हैं। इनके आत्मसमर्पण के बाद संगठन में अंदरूनी मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि शीर्ष स्तर पर इस तरह के सरेंडर से संगठन की साख और जनाधार दोनों पर असर पड़ रहा है।
गद्दार कहने से नहीं रुकेगा सरेंडर का सिलसिला
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में लगातार बढ़ती सुरक्षा दबाव, जंगल इलाकों में विकास कार्य और आत्मसमर्पण नीति के तहत दी जाने वाली सुविधाओं के चलते कई माओवादी नेता हथियार छोड़ने को मजबूर हुए हैं। सोनू और रूपेश का सरेंडर इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है, जिसने बाकी माओवादियों के मनोबल पर भी असर डाला है।
बस्तर में माओवाद का अंत या अंदरूनी संकट की शुरुआत?
जानकारों का कहना है कि अब माओवादी संगठन बाहरी मुकाबले से ज्यादा अंदरूनी असंतोष से जूझ रहा है। शीर्ष स्तर के नेताओं का संगठन छोड़ना इस बात का संकेत है कि माओवादी विचारधारा अब अपने ही सदस्यों में विश्वास नहीं जगा पा रही है। जबकि राज्य सरकार और सुरक्षा बल लगातार यह दावा कर रहे हैं कि आने वाले समय में बस्तर से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा।