रायपुर। छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में जहां आज भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक चुनौती है, वहीं बगीचा स्थित श्री रामकृष्ण आश्रम उम्मीद की एक मजबूत किरण बनकर उभरा है। इस आश्रम के संचालक स्वामी ज्योतिर्मयानंद न सिर्फ शिक्षा, बल्कि जल-संरक्षण, कृषि सुधार और संस्कार निर्माण में भी निरंतर योगदान दे रहे हैं। वर्ष 1997 से शुरू इस प्रयास ने अब तक 1000 से अधिक आदिवासी छात्रों को शिक्षक, वकील, डॉक्टर और प्रशासनिक सेवाओं तक पहुंचाया है।
शिक्षा से बदलाव की शुरुआत बच्चों को आश्रम में मुफ्त आवासीय शिक्षा
350 बच्चों की क्षमता वाले इस आवासीय विद्यालय में पहली से दसवीं तक की कक्षाएं संचालित हो रही हैं, जिसमें 98 प्रतिशत छात्र आदिवासी हैं। पहले यहां लड़कियों के लिए भी शिक्षा की सुविधा थी, लेकिन शासनादेश के बाद अब केवल लड़कों को रखा जा रहा है। स्वामी जी का मानना है, जब तक बच्चों को शिक्षित नहीं करेंगे, तब तक आदिवासियों का विकास संभव नहीं है। पढ़ाई के साथ-साथ योग, प्राणायाम, खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी ध्यान दिया जाता है।
अबुझमाडिय़ा, बैगा, पहाड़ी कोरवा समेत अन्य जनजातियों के लिए समर्पित सेवा
स्वामी जी का कार्यक्षेत्र पीवीटीजी विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के बीच रहा है, जिनमें सबसे अधिक पहाड़ी कोरवा छात्र आश्रम में हैं। वे बताते हैं कि पंडो और भुजिया जैसी जनजातियां भी राज्य में सामाजिक-आर्थिक रूप से अत्यंत पिछड़ी हैं और इनके लिए गंभीर प्रयास की जरूरत है। यही कारण है कि बगीचा आश्रम में शिक्षा को विकास का मूल माध्यम माना गया है।
25 वर्षों की सेवा, पर नहीं लिया एक रुपया दान
अपने जीवन के 86वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी कहते हैं, कोई बड़ा काम नहीं किया, बस कुछ काम किया हूं। आश्रम न कभी दान मांगता है, न ही घूस देता है। वे मानते हैं कि देश के गरीबों का विकास देशवासियों की ही जिम्मेदारी है। हाल ही में विद्यालय के विस्तार और उच्चतर माध्यमिक स्तर के निर्माण के लिए 50 लाख की योजना शासन को भेजी गई है।