नई दिल्लीः मालेगांव ब्लास्ट मामले में NIA की स्पेशल कोर्ट ने गुरुवार (31 जुलाई) को बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने 2008 के विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इस मामले पर अब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अदालत के फैसले पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि विस्फोट में छह नमाजी मारे गए और लगभग 100 घायल हुए। उन्हें उनके धर्म के कारण निशाना बनाया गया। जानबूझकर की गई घटिया जांच/अभियोजन पक्ष इस बरी होने के लिए जिम्मेदार है।
ओवैसी ने इस फैसले को “निराशाजनक” बताया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि 6 नमाजियों की मौत हुई, 100 लोग घायल हुए। उन्हें उनके धर्म की वजह से निशाना बनाया गया। जानबूझकर की गई लापरवाही भरी जांच की वजह से आरोपी बरी हुए।” उन्होंने पूछा कि क्या मोदी और महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार इस फैसले को चुनौती देगी, जैसा उन्होंने मुंबई ट्रेन धमाकों के मामले में किया था। ओवैसी ने कहा, “17 साल बाद भी इंसाफ नहीं मिला। महाराष्ट्र की ‘सेक्युलर’ पार्टियां जवाबदेही क्यों नहीं मांगतीं? 6 लोगों को किसने मारा?”
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राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप
ओवैसी ने जांच में राजनीतिक दखलंदाजी का भी आरोप लगाया। उन्होंने 2016 में अभियोजक रोहिणी सलियन के बयान का जिक्र किया, जिन्होंने कहा था कि एनआईए ने उनसे आरोपियों पर “नरम” रुख अपनाने को कहा था। ओवैसी ने यह भी बताया कि 2017 में एनआईए ने प्रज्ञा ठाकुर को बरी करने की कोशिश की थी, जो बाद में 2019 में बीजेपी सांसद बनीं। ओवैसी ने शहीद पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे का भी ज़िक्र किया, जिन्होंने मालेगांव मामले की साजिश उजागर की थी। करकरे 26/11 मुंबई हमले में शहीद हो गए थे। ओवैसी ने बीजेपी सांसद पर निशाना साधा, जिन्होंने करकरे को “श्राप” देने की बात कही थी।
AIMIM चीफ ने जांच एजेंसियों पर उठाया सवाल
ओवैसी ने जांच एजेंसियों, एनआईए और एटीएस, की लापरवाही और संदिग्ध भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, ”यह आतंकवाद पर कठोर होने का दावा करने वाली मोदी सरकार का असली चेहरा दिखाता है, जिसने एक आतंकी मामले की आरोपी को सांसद बनाया। क्या दोषी जांच अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा?” ओवैसी का कहना है कि जवाब सभी जानते हैं। यह मामला न केवल जांच प्रक्रिया की खामियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या भारत में धार्मिक आधार पर हिंसा के पीड़ितों को कभी न्याय मिलेगा। मालेगांव के पीड़ित आज भी जवाब की प्रतीक्षा में हैं।