बस्तर। चार दशकों से लाल आतंक झेल रही बस्तर की धरती अब अपनी कहानी खुद कहेगी बड़े पर्दे पर। छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘माटी’ बस्तर के दर्द, संघर्ष और उम्मीद को सिनेमा के ज़रिए सामने ला रही है। इस फिल्म का निर्देशन अविनाश प्रसाद ने किया है और निर्माण सम्पत झा द्वारा किया गया है।
‘माटी’ सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, बल्कि बस्तर की आत्मा का जीवंत दस्तावेज़ है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें असली आत्मसमर्पण कर चुके पूर्व नक्सलियों ने भी भूमिका निभाई है — यानी वे अपनी ही कहानी खुद पर्दे पर कह रहे हैं।
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कामरेड भीमा और उर्मिला की आंखों से बस्तर की कहानी
फिल्म की कहानी का केंद्र हैं कामरेड भीमा — एक पूर्व नक्सली जो कभी बंदूक उठाने को मजबूर था और अब सवालों से जूझ रहा है। वहीं उर्मिला गांव की एक बेटी है, जो उम्मीद और बदलाव की प्रतीक बनकर सामने आती है। दोनों के नजरिए से दर्शक बस्तर को भीतर से देखने का मौका पाते हैं।
फिल्म में जल, जंगल, ज़मीन, लोकतंत्र और नक्सलवाद के बीच छिड़ी खामोश जंग को बेहद संजीदगी से दिखाया गया है। यह उस लड़ाई की कहानी है, जो बंदूक की गोली और बैलेट बॉक्स के बीच सिसकती रही है।
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31 अक्टूबर को होगी रिलीज
बस्तर के असली लोकेशनों पर फिल्माई गई ‘माटी’ 31 अक्टूबर 2025 को छत्तीसगढ़ के सभी सिनेमाघरों में रिलीज की जाएगी। यह फिल्म उन सभी के लिए है जो बस्तर को समझना चाहते हैं, और उनके लिए भी जो समझ चुके हैं कि परिवर्तन बंदूक से नहीं, माटी से आता है।
