नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पत्रकारिता करना आसानी नहीं है जहा प्रशंसन नहीं पहुंच पाता वहाँ पत्रकार पहुंच जाता है ऐसे में पत्रकर की हत्या कर देना निंदनीय है
लोकतंत्र का चौथा स्थम पत्रकारिता को कहते है जैसे कार्यपालिका, विधायिका , न्यायपालिका अपने कार्य को पारदर्शिता से करते है वैसे ही एक पत्रकार आमजन की समस्या को लेकर पारदर्शिता दिखने की कोशिश करते है तो उनकी हत्या कर दिया जाता है जो न केवल पत्रकारिता जगत बल्कि समाज के लिए भी एक अपूरणीय क्षति है नए साल के पहले दिन ही छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता करने वाले मुकेश चंद्राकर की हत्या कर दिया गया और डेप्टिक टैंक में शव का ढिकाना लगा दिया गया मुकेश ऐसे पत्रकार थे, जो अपने यूट्यूब चैनल के जरिये बस्तर और बीजापुर में पत्रकारिता करते थे। साथ ही नेशनल न्यूज चैनल से भी जुड़े थे।नक्सलवादियों के गढ़ माने जाने वाले बस्तर के जंगलों में बेखौफ घूमने वाले चंद्राकर ठेकेदार के करप्शन का शिकार बन गए
मुकेश के यूट्यूब चैनल बस्तर जंक्शन पर उनके भाई यूकेश ने बताया कि एक जनवरी की शाम वह आखिरी बार अपने भाई से मिले थे। अगले दिन सुबह 9.30 बजे युकेश चंद्राकर ने कॉल किया तो फोन स्विच ऑफ आया। उन्हें यह सामान्य लगा क्योंकि मुकेश रिपोर्टिंग के दौरान कई बार फोन बंद रखते थे। बस्तर के जंगलों में कई बार नेटवर्क की प्रॉब्लम भी होती है। 2 जनवरी को जब आधे दिन तक खबर नहीं मिली तो युकेश ने परिचितों से संपर्क किया। इस दौरान एक अन्य पत्रकार को फोन किया तब पता चला कि मुकेश को आखिरी बार रितेश चंद्रकार के साथ देखा गया था। रितेश चंद्रकार सड़क बनाने वाले ठेकेदार सुरेश चंद्रकार का छोटा भाई है। फिर युकेश चंद्राकर ने पुलिस को अपने पत्रकार भाई मुकेश के लापता होने की सूचना दी, जिसके आधार पर एफआईआर दर्ज की गई।