Kanker News: छत्तीसगढ़ का ये थाना बना मंडप, पुलिसकर्मी बने घराती-बराती, कुछ ऐसी हुई आत्मसमर्पित नक्सली जोड़े की शादी

Kanker News: छत्तीसगढ़ का ये थाना बना मंडप, पुलिसकर्मी बने घराती-बराती, कुछ ऐसी हुई आत्मसमर्पित नक्सली जोड़े की शादी

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के पखांजूर से आज एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो उम्मीद, बदलाव और विश्वास की कहानी है, जो कभी हाथों में हथियार लिए जंगलों के खाक छाना करते थे, उनके हाथ आज मेहंदी से सजी रही। थाना परिसर में एक आत्मसमर्पित नक्सली जोड़े ने विवाह कर समाज की मुख्यधारा मे लौटने की नई मिशाल पेश की।

दरअसल, सागर दिर्दो और सचिला मंडावी नाम के दो युवक- युवती कभी जंगल के रास्तों पर बंदूक के साये में जीने वाले ये दोनों आज जीवन के नए सफर पर निकले हैं। दोनों ने कुछ माह पहले पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। नक्सलवाद की अंधेरी दुनिया को छोड़कर उन्होंने समाज में लौटने का साहस दिखाया और अब उसी साहस ने उन्हें विवाह के बंधन में बांध दिया है। आज पखांजूर थाना परिसर में मंडप सजा और परंपरागत ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच दोनों ने सात फेरे लिए। पंडित के मंत्रोच्चारण और फूलो की जयमाल ध्वनियों के बीच सागर और सचिला ने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट लक्ष्मण केंवट और निरीक्षक रामचंद्र साहू समेत पुलिस अधिकारी, ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ता इस पल के साक्षी बने। विवाह पूरी हिंदू परंपराओं के साथ सम्पन्न हुआ।

ये विवाह सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि उस सोच की जीत है जो बंदूक से नहीं, बल्कि भरोसे से समाज को जोड़ती है। जो हिंसा छोड़ना चाहता है, उसके लिए समाज और प्रशासन दोनों के द्वार खुले हैं। कभी जिन हाथों में बंदूक थी, अब वही हाथ वरमाला थामे हुए थे। कभी जो कदम जंगल की राहों पर भटके, अब वही कदम समाज की मुख्य सड़क पर लौट आए हैं। दूल्हा सागर और दुल्हन सचिला अब गोपनीय सैनिक के रूप में कार्यरत हैं। यानी अब वे उसी तंत्र का हिस्सा हैं जो कभी उनके खिलाफ था। दूल्हा बने सागर वर्ष 2014 मे नक्सल संगठन से जुड़ा और पखांजूर पुलिस के समक्ष सितंबर 2024 मे आत्मसमर्पण कर दिया। इसके आलावा दुल्हन बनी संजिला गढ़चिरौली मे वर्ष 2020 मे नक्सल संगठन से जुड़ी और वर्ष जून 2024 मे बांदे पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। धीरे धीरे दोनों की पहचान हुई और विवाह करने का फैसला लिया और पुलिस के अधिकारियों ने आज उनका विवाह संपन्न कराया। यह बदलाव न केवल उनकी ज़िंदगी का है, बल्कि पूरे इलाके के लिए उम्मीद का संदेश है।

विवाह पूरी सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के साथ सम्पन्न हुआ।पंडित के मंत्रोच्चारण के बीच थाना परिसर में ‘जयमाल’ और ‘फेरे’ की रस्में निभाई गईं। पुलिस अधिकारी, ग्रामीण, और सामाजिक संगठनों के लोग इस अद्भुत पल के साक्षी बने। थाना प्रभारी से लेकर स्थानीय ग्रामीणों तक सबके चेहरों पर संतोष और खुशी साफ झलक रही थी।क्योंकि आज पखांजूर थाना सिर्फ कानून व्यवस्था का केंद्र नहीं, बल्कि एक नई कहानी का जन्मस्थल बन गया था वह है शांति, प्रेम और विश्वास की कहानी। सागर और सचिला अब गोपनीय सैनिक के रूप में कार्यरत हैं।उन्होंने नक्सलवाद छोड़कर देश की सेवा और समाज के विकास में योगदान देने का निर्णय लिया है। थाना परिसर में जब शादी के गीत गूंजे, तो आसपास के ग्रामीणों ने इसे एक ‘नई शुरुआत’ का प्रतीक माना। लोगों ने कहा अगर ये दोनों हिंसा छोड़ सकते हैं, तो यह इलाके के अन्य युवाओं के लिए भी प्रेरणा बनेंगे।

पखांजूर थाना में हुआ यह विवाह सिर्फ सात फेरे नहीं, बल्कि शांति, विश्वास, पुनर्वास, प्रेम, सम्मान, परिवर्तन और नई शुरुआत का सात संदेश लेकर आया है। यह कहानी बताती है कि बंदूकें कभी भी उतनी ताकतवर नहीं हो सकतीं, जितना एक सच्चे रिश्ते का भरोसा होती है। पुलिस का यह प्रयास न सिर्फ पुनर्वास की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह उस नई कहानी की शुरुआत है, जहां जंगलों की खामोशी में अब उम्मीद की आवाज़ गूंज रही है। सागर और सचिला का विवाह यह साबित करता है कि इंसान चाहे जितना भटक जाए वो अगर लौटना चाहे तो समाज हमेशा उसे गले लगाने को तैयार रहता है। सागर और सचिला का यह मिलन न सिर्फ एक रिश्ते का जन्म है, बल्कि बदलाव की ऐसी कहानी है कोई आने वाले वक़्त मे कई लोगों को नई राह दिखाएगी।


Related Articles