CG News: कवर्धा / छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के कुकदुर वनांचल क्षेत्र में आदिवासी इलाकों में धर्म परिवर्तन की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। बीमारी ठीक करने, चमत्कार दिखाने, झाड़-फूंक और पैसों का लालच देकर भोले-भाले आदिवासियों को बहलाया जा रहा है। खासकर ग्राम नेउर, सारपानी, सज्जखार, रुख्मीददर, पोलमी, नवापारा, डालमोहा, बरटोला, उपका, खसरपानी, अमेरा, बसूलालूट, जामुनपानी और भेलकी जैसे गांवों में हर रविवार को प्रार्थना सभाएं आयोजित की जा रही हैं। इन सभाओं में मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले से दर्जनों वाहन भरकर प्रचारक पहुंचते हैं, जो देर रात तक धार्मिक कार्यक्रमों का संचालन करते हैं।
धर्म परिवर्तन के लिए दे रहे तरह-तरह का लालच
CG News: सबसे अधिक सक्रियता नेउर, पोलमी और सज्जखार गांवों में देखी जा रही है, जहां विशेष रूप से प्रार्थना सभा के लिए घर बनाए गए हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बाहरी फंडिंग से इन इलाकों में भवन तैयार किए जा रहे हैं, जो धर्मांतरण गतिविधियों का मुख्य केंद्र बनते जा रहे हैं। ग्रामीणों को उम्मीद है कि प्रदेश में शासन परिवर्तन के बाद अब इस तरह की गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई होगी। ग्रामीणों का आरोप है कि इन प्रचारकों द्वारा आदिवासियों की परंपराओं, संस्कृति और सामाजिक ढांचे को तोड़ा जा रहा है, जिससे स्थानीय समाज में गहरा असंतोष है।
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आदिवासियों के भोलेपन का उठाया जा रहा फायदा
CG News: वनांचल क्षेत्र में धर्म परिवर्तन के कई गंभीर मामले सामने आ चुके हैं। हाल ही में ठेंगाटोला गांव में बैगा समुदाय के एक युवक की मृत्यु हो गई थी। परंपरा के अनुसार मृतकों का दाह संस्कार होना चाहिए था, लेकिन सभा से जुड़े कुछ लोगों ने उसका दफन कर दिया, जिससे समाज में भारी आक्रोश फैल गया। वहीं ग्राम पंचायत तेलियापानी लेदरा के एक आश्रित गांव में जब आंगनबाड़ी सहायिका ने धर्म बदला तो पूरा गांव उसके विरोध में उतर आया। ग्रामीणों ने साफ कर दिया कि यदि वह महिला आंगनबाड़ी में भोजन पकाएगी तो वे अपने बच्चों को वहां नहीं भेजेंगे। इस कारण फिलहाल वह कार्यकर्ता स्वयं खाना बनाकर बच्चों को खिला रही है। इसके अलावा सेदूरखार गांव में एक कोटवार को धर्म परिवर्तन के चलते समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि आदिवासी इलाकों में धर्मांतरण का प्रभाव केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर सामाजिक व्यवस्था और परंपराओं पर भी पड़ रहा है। ग्रामीणों की मांग है कि शासन – प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए तत्काल प्रभावी कदम उठाए।