मुजफ्फरपुर जिले के साहेबगंज थाना क्षेत्र स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय संकुल बिशनपुर कल्याण से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। स्थिति उस समय अजीबोगरीब हो गई जब स्कूल परिसर में नागमणि मिलने की खबर आग की तरह गांव में फैल गई।इसके बाद न सिर्फ ग्रामीणों में कौतूहल बढ़ गया, बल्कि स्कूल परिसर में भारी भीड़ जमा हो गई, जिसे नियंत्रित करने के लिए स्थानीय पुलिस को मौके पर बुलाना पड़ा।
जानकारी के मुताबिक, पूरा मामला उस वक्त शुरू हुआ जब स्कूल की एक छात्रा को एक रहस्यमयी पत्थर मिला। छात्रा का कहना था कि यह पत्थर उसे सांप ने दिया है। छात्रा ने वह पत्थर अपनी शिक्षिका संजू कुमारी को सौंप दिया, जिन्होंने इसे अपने पास रख लिया और चुपचाप अपने घर ले गईं।
तीन दिन बाद गांव में फैली खबर, ग्रामीणों में मचा हड़कंप
इस घटना के तीन दिन बाद जब यह बात बच्ची के परिजनों और गांव के अन्य लोगों को पता चली, तो पूरे इलाके में नागमणि मिलने की अफवाह फैल गई। नतीजन बड़ी संख्या में ग्रामीण, बच्चे और उनके परिजन स्कूल में जुट गए। सभी ‘नागमणि’ रूपी पत्थर को देखने की जिद करने लगे।
गांव वालों का कहना था कि अगर वाकई यह नागमणि है, तो उसे सार्वजनिक किया जाए, न कि किसी के घर में छिपा कर रखा जाए। भीड़ बढ़ती देख स्कूल प्रशासन ने स्थानीय पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद पुलिस की टीम स्कूल पहुंची और मामले की जांच शुरू की।
क्या है नागमणी के पीछे की कहानी?
स्कूल के उप-प्रधानाचार्य रविरंजन कुमार ने बताया कि उन्हें शिक्षिका संजू कुमारी के पास पत्थर होने की जानकारी मिली थी। पूछताछ में यह स्पष्ट हुआ कि पिछले कुछ दिनों से स्कूल में एक विषैला सांप दिखाई दे रहा था और उसी दौरान छात्रा ने पत्थर लाकर शिक्षिका को दिया था। बच्ची ने कहा था कि यह पत्थर उसे उसी सांप ने दिया है।
हालांकि शिक्षिका ने इसकी सूचना न स्कूल प्रशासन को दी और न ही किसी और को बताया। बल्कि उसने पत्थर को चुपचाप अपने घर ले जाकर रख लिया। जब यह बात ग्रामीणों तक पहुंची, तो उन्होंने शिक्षिका पर सवाल उठाते हुए पत्थर को लौटाने की मांग की। गौरतलब है कि नागमणि जैसी कोई चीज वास्तविकता में नहीं होती है।
पुलिस कर रही मामले की जांच
पुलिस ने शिक्षिका और स्कूल प्रशासन से पूछताछ की है और पत्थर को लेकर जांच जारी है। प्राथमिक विद्यालय के प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि अगर किसी को कोई वस्तु स्कूल परिसर में मिलती है, तो उसकी सूचना तत्काल रूप से प्राचार्य या जिम्मेदार अधिकारी को दी जानी चाहिए। ऐसे मामलों में किसी भी शिक्षकीय लापरवाही को स्वीकार नहीं किया जा सकता।