रायपुर। राजधानी के नजदीकी ग्राम दोंदेखुर्द में शराब दुकान खोलने के प्रस्ताव के खिलाफ ग्रामीणों ने जोरदार विरोध शुरू कर दिया है। स्थानीय लोगों खासकर महिलाओं ने सरकार और प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अंबेडकर चौक पर तख्तियां लेकर प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि क्या शराब दुकान खोलने से “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों का उद्देश्य पूरा हो पाएगा? उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने शराब दुकान खोलने का निर्णय वापस नहीं लिया, तो वे चक्काजाम और विधानसभा घेराव जैसे कड़े कदम उठाएंगे।
दोंदेखुर्द के ग्रामीणों का कहना है कि शराब दुकान को जबरदस्ती उनके गांव पर थोपा जा रहा है। आसपास के गांवों जैसे छपोरा, लालपुर, सेमरिया, मटिया और दोंदे कला ने शराब दुकान खोलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। इसके बावजूद, सरपंच अशोक साहू की सहमति से दोंदेखुर्द में शराब दुकान खोलने की तैयारी की जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि यह निर्णय उनके गांव की शांति और सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर देगा।
ग्रामीणों की सबसे बड़ी चिंता अपनी भावी पीढ़ी को लेकर है। उनका मानना है कि शराब दुकान खुलने से न केवल बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ेगा, बल्कि महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की घटनाएं भी बढ़ेंगी। ग्रामीणों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह स्वयं शराब के सेवन को बढ़ावा दे रही है, जो सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है।
2013 में शराब मुक्त हुआ था गांव
ग्रामीण गीता गुप्ता ने बताया कि साल 2013 में गांव वालों ने एकजुट होकर संघर्ष समिति बनाई और दोंदेखुर्द से शराब दुकान को बंद करवाया था। इसके बाद, अवैध शराब बिक्री के खिलाफ भी ग्रामीणों ने लगातार कार्रवाई की। पंचायत स्तर पर शराब पीकर हुड़दंग मचाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाए गए। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप, दोंदेखुर्द पिछले 12 वर्षों से शराब मुक्त रहा है। ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि जब गांव ने स्वयं शराब मुक्ति की जिम्मेदारी ली थी, तो अब सरकार इसे फिर से नशे की ओर क्यों धकेल रही है?
प्रशासन को सौंपा ज्ञापन
अंबेडकर चौक पर प्रदर्शन की सूचना मिलने पर प्रशासनिक अधिकारी उमाशंकर बांदे मौके पर पहुंचे। ग्रामीणों ने उन्हें एक ज्ञापन सौंपकर अपनी मांगें स्पष्ट कीं। उन्होंने दो टूक चेतावनी दी कि यदि शराब दुकान खोलने का निर्णय वापस नहीं लिया गया, तो वे सड़कों पर चक्काजाम करेंगे और विधानसभा का घेराव करेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि वे अपनी मांगों को लेकर किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
ग्रामीणों का मानना है कि शराब दुकान खुलने से गांव का माहौल खराब होगा। शराब के सेवन से अपराधों में वृद्धि होगी, और बहन-बेटियों को असामाजिक तत्वों के तंज का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा, शराब दुकान के कारण गांव की शांति भंग होगी और सामाजिक ताने-बाना कमजोर होगा। ग्रामीणों ने यह भी कहा कि सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, न कि शराब दुकानों को बढ़ावा देना चाहिए।
सरकार की नीति पर सवाल
प्रदर्शनकारी महिलवाओं ने सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक ओर सरकार “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों को बढ़ावा देती है, वहीं दूसरी ओर शराब दुकान खोलकर सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा दे रही है। उनका कहना है कि शराब दुकान खोलने से न केवल गांव का माहौल खराब होगा, बल्कि यह सरकार के विकास और कल्याण के दावों पर भी सवाल उठाता है।