सरगुजा में सिस्टम की लापरवाही से गई नवजात की जान: घंटों इंतजार के बाद भी नहीं पहुंची एंबुलेंस, घर में ही कराई डिलीवरी

सरगुजा में सिस्टम की लापरवाही से गई नवजात की जान: घंटों इंतजार के बाद भी नहीं पहुंची एंबुलेंस, घर में ही कराई डिलीवरी

Surguja Ambulance Delay Case: छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में एक दर्दनाक और चिंताजनक घटना सामने आई है, जिसने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेष संरक्षित जनजाति वर्ग से आने वाली 26 वर्षीय दुर्गावती पंडो की समय पर इलाज न मिलने की वजह से नवजात की मौत हो गई।

पूरा मामला सरगुजा के उदयपुर ब्लॉक के ग्राम मृगाडांड का है, जहां 16 अप्रैल की सुबह दुर्गावती पंडो को प्रसव पीड़ा हुई। गांव की मितानिन ने तुरंत महतारी एक्सप्रेस 102 को कॉल किया, लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी महतारी एक्सप्रेस नहीं पहुंची। ऐसे में मितानिन ने घर में ही डिलीवरी कराई। इस दौरान बच्चे की तबीयत बिगड़ गई और सांस लेने में तकलीफ होने लगी।

डिलीवरी के बाद पहुंची महतारी एक्सप्रेस
कुछ देर बाद जब महतारी एक्सप्रेस पहुंची, तब तक हालात गंभीर हो चुके थे। महतारी एक्सप्रेस से दुर्गावती और नवजात को उदयपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC Udaipur) लाया गया, जहां जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि नवजात ने जन्म के समय गंदा पानी पी लिया है और उसे तुरंत अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर किया गया।

चार घंटे इंतजार के बाद भी नहीं आई 108 एम्बुलेंस
बच्चे की बिगड़ती हालत को देखते हुए 108 एम्बुलेंस को कॉल किया गया, लेकिन अगले 4 घंटे तक एम्बुलेंस नहीं पहुंची। परिजन और मितानिन लगातार इंतजार करते रहे। इस बीच नवजात की हालत और बिगड़ गई और आखिरकार शाम 6 बजे बच्चे की मौत हो गई।

नवजात की मौत के घंटों बाद 108 एम्बुलेंस से कॉल आया कि गाड़ी रवाना हो चुकी है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। नवजात के पिता तुलेश्वर पंडो ने बताया कि वह इतने सक्षम नहीं थे कि निजी वाहन से अस्पताल पहुंचा पाते। यदि समय पर एम्बुलेंस मिल जाती, तो शायद बच्चे की जान बचाई जा सकती थी।

जांच के बाद होगी कार्रवाई – बीएमओ
इस पूरे मामले पर ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (BMO) डॉ. योगेंद्र पैकरा ने कहा कि अस्पताल तक समय पर न पहुंच पाने के कारण नवजात की सही देखभाल नहीं हो सकी। उन्होंने यह भी कहा कि एम्बुलेंस सेवा में हुई देरी की जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।

यह घटना न सिर्फ एक सिस्टम फेलियर को उजागर करती है, बल्कि यह भी सवाल खड़े करती है कि सरकार की योजनाएं जमीन पर कितना प्रभावी ढंग से काम कर रही हैं, खासकर आदिवासी और दूरस्थ इलाकों में।


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